Friday, October 16, 2015

जागो और संगठित बनो.

हजारो वर्षो की गुलामी को,
मै जड़ से मिटा चला हूं।
मनुस्मृति की काली छाया की,
मैँ होली जला चला हूँ।।
स्वाभिमान की खातिर,
परिवर्तन की जोत जगा चला हूं।
ना समझो मर्जी तुम्हारी,
मैँ अपना फर्ज निभा चला हूं॥
- Dr. B. R. Ambedkar


2 comments:

  1. सही कहा मित्र समाज को अभी शिक्षित और संगठित होने की आवश्यकता है
    तब जाकर ही संघर्ष कर सकते है

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  2. आवाज आदिवासियो की-जयसिंह नारेड़ा
    http://jsnaredavoice.blogspot.com/

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