Thursday, December 17, 2015

डर गए मेरी रफ्तार से तो लो आरक्षण छोड़ता हूँ मैं !!!!

डर गए मेरी रफ्तार से तो लो आरक्षण छोड़ता हूँ मैं !!!!
तुम बस ये ऐलान कर दो कि मैं तुम जैसा हूँ और तुम मेरे जैसे ।कह दो कि ब्रह्मा के मुख से नही निकले तुम !! 
नही निकले उसकी भुजाओं से ! या फिर उसके पेट से !! क्योंकि मैं वहां से बिलकुल नही निकला !!!
मुझे मेरे माता-पिता ने जन्म दिया है एक प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा और कहो कि तुम मुझसे किसी भी मायने में उच्च और श्रेष्ठ नही हो !!!
और अगर सचमुच मुझसे श्रेष्ठ हो तो साबित करो !!
पैर और मुँह का अंतर सिर्फ अधिकार तक सीमितहै क्या ????
कर्तव्य नही बनता क्या श्रेष्ठ लोगों का अपने से कमजोरों के प्रति ???
पर जब खाने की बारी आये तो तुम याचक बन जाते हो !!!
और खिलाने की बात आये तो not reachable हो जाते हो ???
ये आरक्षण खत्म करते हैं
!!!चलो पहले बताओ अपनी कुटिलता के किस्से !!!!

और माफ़ी मांगो कि हमारे पूर्वजों ने झूठ बोल कर छल कपट से  धर्म के नाम पर जाति के नाम पर और झूठे ग्रन्थों के नाम पर पूरे देश को मूर्ख बनाये रखा , जिसका दुष्परिणाम आज तक देश और पूरी पीढ़ी भुगत रही है । ये भी कहो कि सभी आदमी बराबर होते हैं किसी जाति में पैदा होकर ना कोई नीच होता है और ना ही ऊँचा !!!!!
कह दो कि मन्दिरों में बैठकर तुमने मलाई काटी है । अपनी शस्त्र विद्या से तुमने ही निर्दोष भाईयो का गला काट कर उनके साथ विश्वासघात किया है । तुमने छुरा हमेशा अपनों की पीठ में घौंपा है ।डरा धमका कर तुमने जमीन पर अपना कब्जा किया और मुट्ठी भर अनाज के बदले खून के आंसू रुलाए हैं । कह दो कि तुम लोगों ने किसी मजबूर की मजबूरी का लाभ उठा कर एक रुपये के बदले सूद के रूप में उसकी जिंदगी की सारी मेहनत सम्मान इज्जत और अंत में उसकी जान पर भी पीछा नही छोड़ा ।और उसी एक रुपये को उसकी पीढ़ियों से भी वसूल किया है ।
जिस जिस आदमी ने आरक्षण के खिलाफ ज़हर उगला है वो मेरी उपरोक्त बातें अपनी वाल पर लिखे ।
सरकार के पास चिट्ठी लिखे मन्दिर की दीवारों पर लिखवाये और सभी सार्वजनिक स्थानों पर ठीक उसी अंदाज में पर्चे छपवा कर बांटे कि (पुजारी ने सांप देखा, सांप मनुष्य बनकरबोला etc वाला मैटर )। और सबसे महत्वपूर्ण बात उस गलती को सुधारने का प्रयास करें जो तुम्हारे दादा नाना ने की है । आरक्षितों के साथ "बेटी
-रोटी का व्यवहार" करें । कीमत ज्यादा नही है दोस्तों औरएकदम दीवाली धमाका है तुम्हारे ही अंदाज में । मैं नही कहूँगा कि 2000 साल तक शिक्षा , सम्पति के अधिकार से वंचित रहना पड़ेगा । गाँव से बाहर जंगल में रहना पड़ेगा। गले में हांड़ी और कमर पर झाड़ू बाँधनी पड़ेगी । खेतों में जानवर की तरह मेहनत करो और हल चलाना पड़ेगा । फसल के समय खाने के दानों के लिए गिड़गिड़ाना पड़ेगा । नालियों की और गटर की सफाई करनी पड़ेगी । और रूपये के बदले पीढियां गंवानी पड़ेंगी । क्योंकि जिसने इतना सहा है उसकी झुकी कमर बोझिल मन मष्तिष्क आँखों के आंसू शरीर की त्वचा जुल्म को याद कर के खड़े होने वाले रौंगटे आज भी सम्मान की ,इज्जत की, भूख की ,कीमत समझते है ।और मैं उसी का हिस्सा हूँ ।



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